सावरकर के जन्मदिन पर नवीन संसद भवन

कौशल किशोर | twitter @mrkkjha

आज नवनिर्मित संसद भवन का लोकार्पण है। देश के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी का सपना साकार हो रहा है। इसके कारण भारत में एक ओर उत्सव का माहौल है तो दूसरी ओर बहिष्कार भी हो रहा है। नवीन संसद भवन 64500 वर्ग मीटर में फैला है। पुराने संसद भवन की अपेक्षा यह उन्नत और आधुनिक है। लोक सभा के कुल 552 सीट के बदले इसमें 888 सांसद बैठ सकते हैं और राज्य सभा के 245 सीट की जगह 384 सांसदों के लिए व्यवस्था की गई है। संयुक्त संसद सत्र हेतु 1272 सांसदों के अलावा 1140 अतिरिक्त सीट की व्यवस्था की गई है। इस तरह नया संसद भवन भविष्य की जरूरतों का ख्याल रख कर बनाया गया है। ठीक 140 साल पहले आज के ही दिन क्रांतिकारी महानायक विनायक दामोदर सावरकर का जन्म हुआ था। इस तरह यह महत्त्वपूर्ण आयोजन उनके प्रति श्रद्धांजलि भी साबित होती है।

नया संसद भवन सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट का एक अहम हिस्सा है। कुल दो साल की अवधि में नए संसद भवन का निर्माण और साज सज्जा का काम सफाई से पूरा किया जाना उपलब्धि है। अहमदाबाद की कंपनी एचसीपी डिजाइन प्लानिंग प्राइवेट लिमिटेड के आर्किटेक्ट बिमल पटेल ने इसे डिजाइन किया है और टाटा ग्रुप 971 करोड़ रुपए की लागत से खड़ा करती है। इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र द्वारा इसकी सजावट को मूर्त रुप देने में अहम भूमिका निभाई गई है। इस अल्प अवधि में सफाई से काम पूरा करने वाले सभी लोग बधाई के पात्र हैं।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह सभी दलों को इस आयोजन में शामिल होने का आमंत्रण देते हैं। इस अवसर पर सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक राजदंड (सेंगोल) का प्रदर्शन होगा। पहले प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरु को दक्षिण भारत के आचार्यों द्वारा इसे सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर 1947 में सौंपा गया था। यह नए संसद भवन में इसकी प्रतिष्ठा का अवसर है।

संसद भवन भारतीय लोकतंत्र का पवित्र स्थल माना जाता रहा है। इसका उद्घाटन समारोह पूरे देश के लिए गौरव की बात है। इस अवसर पर सभी दलपतियों को एकता का परिचय देना चाहिए था। दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं होता दिखता। प्रधान मंत्री मोदी के हाथों पराजित हुए योद्धा आज राष्ट्रपति के हाथों लोकार्पण की मांग कर रहे हैं। उन्नीस राजनीतिक दलों ने तो इसका बहिष्कार कर भारतीय लोकतंत्र को अभिव्यक्त किया है। एक वकील राष्ट्रपति द्रौपदी के हाथों यह आयोजन कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करते हैं। जिसे कोर्ट द्वारा खारिज किया जा चुका है। संभव है कि जनता भी इसी तरह बहिष्कार में लगे राजनीतिक दलों को आगामी चुनाव में खारिज कर दे। परंतु आपसी सहभागिता और सहमति से इस समारोह का संपन्न होना ही बेहतर था।

आज वीर सावरकर के नाम से तिलमिला उठने वाले राजनीतिक प्राणियों की पीड़ा चरम पर है। जीवन भर कष्ट झेलने वाले इस राष्ट्रवादी नायक की मौत के दशकों बाद ऐसा होना उनके पुरुषार्थ को ही इंगित करता है। साथ ही इस कुत्सित प्रयास में लगे लोगों की मंशा भी प्रकट कर देता है। महात्मा गांधी और वीर सावरकर जैसे महान राजनेताओं के नाम पर राजनीति की रोटियां सेंकने वाले लोगों को ऐसे हथकंडों को तिलांजलि देने की जरूरत है।

तेरह साल पहले नवीन संसद भवन के लिए प्रयास आरंभ करने वाले राजनीतिक दलों को इस उपलब्धि पर खुश होना चाहिए। साथ ही यह भी प्रयास करना चाहिए कि औपनिवेशिक शासन के दौरान 1927 में निर्मित पुराने भवन के बदले निर्मित नवीन संसद भवन गुलामी की मानसिकता और बिंबों से मुक्ति का भी मार्ग प्रशस्त कर सके। बर्तानवी संसदीय मर्यादा के समक्ष गणतंत्र की जननी भारत के अनुकूल मर्यादा स्थापित कर सके। आजादी की जंग में सर्वस्व न्यौछावर करने वाले शहीदों के प्रति यह सच्ची श्रद्धांजलि होगी। निश्चय ही इस यज्ञ के लिए विनायक दामोदर सावरकर श्रेष्ठ प्रतीक पुरुष हैं।

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