महात्मा गांधी के बलिदान का अमृत पर्व

कौशल किशोर | Twitter @mrkkjha

बापू के बलिदान को 74 साल पूरे हो गए। आज़ादी के अमृत महोत्सव के दौरान इस पर्व की अपनी अहमियत है। धर्म संसदों में बराबर चर्चा के कारण लगातार सुर्खियों में बने हैं। हालांकि यह नफ़रत का व्यापार ही है। यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उत्तराखण्ड पुलिस ने इस मामले में दोषी यति नरसिंहानंद और अन्य लोगों को जेल भेज दिया है। रायपुर में महात्मा गांधी को गाली देते कालीचरण महाराज पुलिस के हाथों खजुराहो से गिरफ़्तार कर पहले ही जेल भेजे जा चुके हैं। हालांकि इसकी जानकारी स्थानीय पुलिस को नहीं थी।

मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्र ने इस मामले में कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की। फिर जवाब देने के क्रम में छत्तीसगढ़ के गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू प्रादेशिक सरकारों के बीच का समीकरण उजागर करते हैं। यह देश में गृह कलह की स्थिति बयां करती है। इसके साथ ही कालीचरण के समर्थन में आवाज़ बुलंद करने वाले भी खुल कर उभरने लगे हैं। महामारी के इस दौर में ओमिक्रोन के संक्रमण की तरह ही देश में कलह, हिंसा और युद्ध की दुरूह स्थिति पनप रही है। हरिद्वार और रायपुर में आपसी कलह, हिंसा और नफ़रत की पैरवी करने वाले इन लोगों ने अपना ही परिचय दिया है, गांधीजी का नहीं।

दिल्ली में हिन्दू राष्ट्र की मांग शुरु किया गया था। इसके उपरांत हिन्दू धर्म में हाशिए पर मौजूद रहे अवयवों ने फतवा जारी करने का यह सिलसिला हरिद्वार में शुरु किया। मुसलमानों और ईसाईयों को मसलने की पैरवी भारतीय संविधान को ही खारिज करता है। यहां कानूनी कार्रवाई के नाम पर पुलिस इनकी सुरक्षा में लगी है। कई जवान खुल कर समर्थन भी कर रहे हैं। पूर्व जल सेना प्रमुख एडमिरल राम दास समेत सौ से ज्यादा पूर्व उच्चाधिकारियों ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है। साकेत गोखले और मार्टिना नवरातिलोवा जैसे चर्चित लोगों ने आवाज़ बुलंद किया और सोशल मीडिया भी दो खेमों में बंट गया।

उत्तराखण्ड, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की पुलिस कानून का पालन करने के क्रम में राजनीतिक नेतृत्व और चुनाव के बीच का समीकरण उजागर करती है। हरिद्वार में जांच की गति देख कर यही लगता रहा कि सत्ता परिवर्तन के बाद ही कार्यवाही मुमकिन है। परंतु न्यायालय ने इसे शीघ्र सुनिश्चित किया। अनुशासित मानी जाने वाली पुलिस की यह अक्षमता विचारणीय है। इसके कारण व्यापक स्तर पर शांति और सुरक्षा के लिए खतरा पैदा होता है। उत्तराखंड पुलिस के महानिदेशक चाह कर भी अपराधियों के इस गिरोह के खिलाफ कुछ नहीं कर पा रहे थे। उन्होंने वायरल वीडियो में हिंसा की पैरवी करने वाले साधुओं और पुलिस के जवानों के विरूद्ध कड़ी कार्रवाई करने का जिक्र किया था।

इसके अतिरिक्त कानपुर रैली के बाद वैमनस्य की राजनीति के खिलाड़ी अकबरुद्दीन ओवैसी की धमकियां सुर्खियों में रही। योगी को मठ और मोदी को पहाड़ पर भेजने की राजनीति का प्रतिकार करने के लिए भी लोग मैदान में हैं। नफ़रत की आग में घी डालने के मामले में कोई किसी से पीछे नहीं रहना चाहता है। भाजपा और कांग्रेस शासित राज्यों में ही नहीं, बल्कि वामपंथी सरकार में भी पुलिस न्याय सुनिश्चित करने के बदले वोट बैंक तुष्टिकरण में लगी है। जनता को भूलों का एहसास कर सही दिशा में आगे बढ़ने को प्रेरित करने के बदले नेता भीड़ का अनुशरण करते प्रतीत होते हैं। यह लोकतंत्र का भीड़ताँत्रीकरण है। इस दशा में आम जनता का मार्गदर्शन करने वाले गांधी वाकई प्रासंगिक हैं।

बगावत के इस अंगारे के कारण सूबेदार से लेकर चौकीदार तक सब मौन हैं। इस सन्नाटे को तोड़ने वाले भी रायपुर में उसी मंच पर मौजूद हैं। राम सुंदर दास इस धर्म संसद की अधार्मिकता पर कठोर आघात कर गांधीजी के अंतिम दिनों में भारत की स्थिति का जिक्र करते हैं। सावरकर और गोडसे के करीबी रिश्ते के बावजूद नेहरू और पटेल ने भी जेल के बदले नजर रखने की नीति अपनाया था। हालांकि ऐसे लांछित अतीत को भविष्य नहीं माना जा सकता है। अंग्रेजों के साथ खड़े लोगों के वंशजों को सजा देने की बात नाजायज है। ठीक इसी तरह हिंदुओं पर किए गए अत्याचारों की सज़ा आज के मुसलमानों को देना भी वाजिब नहीं है। राम सुंदर दास की तरह असत्य और अन्याय का प्रतिकार आवश्यक है। इसके लिए समाज के प्रबुद्घ लोगों को आगे आने की जरूरत है।

अल्पसंख्यकों का देश के सभी संसाधनों पर पहला हक बताने वाले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को धर्म दास ने मौत के घाट उतारने का ऐलान किया था। हाशिए पर मौजूद ऐसे लोगों को देशवासियों ने पहले कभी महिमामंडित नहीं किया था। आज ऐसा भी हो रहा है। यह देश का दुर्भाग्य ही है। आज एक ओर संघ प्रमुख मोहन भागवत समरसता का पाठ पढ़ा रहे हैं, तो दूसरी ओर विभाजन के अगली कड़ी की तैयारी हो रही है। इसके साथ सीमाओं पर तनाव बढ़ रहा है। अंदर और बाहर कलह की यह स्थिति सचमुच विस्फोटक है।

इस कलह का फायदा उठाने वाली शक्तियां भी बराबर सक्रिय है। चीनी मीडिया में प्रोपगंडा है कि पहली जनवरी को चीन द्वारा गलवान घाटी में झंडा फहराया गया। हालांकि चीन में हर नया साल अलग समय पर मनाया जाता है। इस साल कई दिनों तक चलने वाला यह उत्सव पहली फरवरी से शुरू होगा। गलवान घाटी में सेवारत डोगरा रेजीमेंट के जवानों ने नव वर्ष के अवसर पर झंडा फहराया था। भारतीय सेना द्वारा तीन दिन बाद इसका खंडन किया गया। यह प्रोपगंडा वार भविष्य की चुनौतियों को उकेरती है।

चुनाव के इस मौसम में अंतर कलह का आलम भविष्य में गृह युद्ध की आशंका पैदा करता है। बाहरी शत्रुओं ने सीमा पर अतिक्रमण का इरादा जाहिर किया है। सौ करोड़ लोगों के टीकाकरण के दावों के साथ नई लहर के कारण महामारी का विस्तार तेजी से होने लगा है। बाजार में टीके के बूस्टर डोज की मांग है। बार बार टीकाकरण के बदले बापू रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने की पैरवी करते थे। तिब्बत में हिन्द स्वराज के सपनों को साकार कर विश्व शांति का मार्ग प्रशस्त होगा। इस तथ्य को नकार नहीं सकते हैं कि सावरकर और गांधी देश का विभाजन नहीं चाहते थे। साथ ही इस पर्व पर यह भी विचार करना चाहिए कि 125 साल जीने का सपना देखने वाले बापू अकाल मृत्यु का शिकार नहीं होते तो देश दुनिया कैसी होती।

Leave a comment